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लेखनी प्रतियोगिता -16-Feb-2023 महक



शीर्षक = महक



बाहर खिड़की से आ रही एक सोंदी सोंदी माटी की महक ने, बिस्तर पर सौ रही अनन्या को उठने पर मजबूर कर दिया, अनन्या ने एक ज़ोर की अंगड़ाई ली और अपने ऊपर पड़ी चादर को हटा कर उठ कर बैठ गयी


कुछ पानी के से गिरने की आवाज़ आ रही थी, वो उठ कर खिड़की का पर्दा हटाने ही वाली थी, की उसकी माँ उसके कमरे में आन पहुंची और उसे उठा बैठा देख बोली 


"उठ गयी बेटा, थोड़ी देर और सौ जाती, रात भी तूने देर तक पढ़ाई की थी और अब इतनी जल्दी उठ कर बैठ गयी  "


"माँ, ये मिट्टी की महक कहा से आ रही है, इसी महक की वजह से मेरी आँख खुल गयी " अनन्या ने कहा


"अरे ये महक! ये महक तो बाहर बारिश की वजह से आ रही है, मिट्टी बहुत दिनों से सूखी जो पड़ी थी बारिश के इंतज़ार में" अनन्या की माँ ने कहा


"बारिश! बारिश हो रही है बाहर, जब ही तो इतनी प्यारी महक आ रही है,," अनन्या ने कहा और उठ कर जाकर खिड़की पर पड़ा पर्दा हटा दिया, बाहर वाकई बहुत मजे की बारिश हो रही थी और साथ ही साथ मिट्टी से आ रही महक उसके मन को भा रही थी


"मम्मी, पापा और भैया चले गए क्या? क्या वो बारिश में ही चले गए?" अनन्या ने पूछा

"नही,, मैंने रोक लिया, बारिश बहुत तेज हो रही है, इसलिए मैंने उन लोगो को भी नही जाने दिया और हाँ तुम्हे भी कोई ज़रूरत नही आज कॉलेज जाने की, बेवजह भीग जाओगी, फिर दवाई खाने में भी नखरे दिखाती हो, इसलिए कोई ज़रूरत नही आज कॉलेज जाने की, पापा और भाई भी घर पर है तो तुम भी घर पर ही रहो " अनन्या की माँ ने कहा

"ओह माँ! तुम्हे कितनी परवाह रहती है हम सब की, तुम न हो तो एक कदम भी चलना मुश्किल हो जाए हम लोगो का, अच्छा मैं रुक जाती हूँ, लेकिन मैं घर का कोई काम नही करूंगी और हाँ आप तो जानती हो, मुझे बारिश में आलू के पराठे कितने पसंद है, इसलिए मैं आलू के पराठे खाउंगी " अनन्या ने कहा


"हाँ, हाँ जानती हूँ, आज से पहले तूने कभी घर के काम को हाथ लगाया है, जो आज लगाएगी, देखना जब ससुराल जाएगी और वहाँ कुछ भी नही कर पायेगी तब तुझे पछतावा होगा " अनन्या की माँ ने कहा

"ओह माँ! अभी मेरी उम्र ही कितनी है, अभी से मुझे पराये करने की बाते मत करो, अच्छा बताओ न आलू के पराठे बना रही हो न मेरे लिए या फिर मैं भीगती हुयी कॉलेज चली जाऊ" अनन्या ने कहा


"हाँ मेरी माँ बना रही हूँ, आज से पहले कभी ऐसा हुआ है क्या कि बारिश हुयी हो और तेरे लिए मैंने आलू के पराठे न बनाये हो, अब जा नहा धोकर बाहर आ हम सब तेरा इंतज़ार कर रहे है " अनन्या की माँ ने कहा और वहाँ से चली गयी


अनन्या थोड़ी देर बालकनी में खड़ी होकर, बाहर हो रही बारिश में खुद को भिगोती है और मिट्टी की महक का आंनद लेती है और फिर जाकर नहा धोकर बाहर नाश्ते की मेज पर बैठ जाती है


जहाँ उसका भाई सुभाष उसे थोड़ा बहुत परेशान करता है, मोटी मोटी कहकर, वैसे तो अनन्या हष्ट पुष्ट थी लेकिन फिर भी भाई बहन तो कहा एक दुसरे को परेशान किए बिना रहते कहा है


इसी बीच गरमा गर्म आलू के पराठा ओ और अदरक वाली चाय की महक के साथ अनन्या की माँ मेज पर आती है, जिसके बाद तो अनन्या और उसके भाई सुभाष के बीच आखिरी पराठे को लेकर खींचा तानी शुरू हो जाती है, भले ही अपना अपना हिस्सा मिल गया हो लेकिन फिर भी जो मजा एक दुसरे से छीन कर खाने में आता है शायद वही असल भाई बहन का प्यार कहलाता है,

मेरा पराठा है, नही मेरा पराठा है,,, नही ये मेरा पराठा है,,, आखिरी पराठा बढ़े का होता है और मैं तेरा बड़ा भाई हूँ सुभाष ने कहा


नही आखिरी चीज छोटो की होती है, मैं तेरी छोटी बहन हूँ ये मेरा हिस्सा है अनन्या ने कहा

काफी देर तक ऐसा करने के बाद, अनन्या को लगा की किसी ने उसे हिलाया, शायद उसकी माँ ने उन दोनों को रोकने के लिए ऐसा क्या होगा

लेकिन जैसे ही अनन्या ने देखा तो वो कोई और नही पास खड़ा उसका पति था जो उसे देख कर बोला


क्या हुआ? क्या तेरा क्या मेरा कर रही हो, उठना नही है, कब से अलार्म बज रहा है, क्या आज हम सब को भूखा भेजनें का इरादा है, माँ भी कबसे आवाज़ दे रही है, और तुम हो की ये मेरा ये तेरा किए जा रही हो


अनन्या जिसे अभी भी यकीन नही आ रहा था की वो सपना देख रही थी इसलिए तो भाग कर जाकर खिड़की पर से पर्दा हटाती है, उसे लगा बारिश हो रही थी और उसकी माँ उसे उठाने आयी थी


जबकी उसकी माँ और पिता को गुज़रे तो काफी अरसा हो गया था, माँ के मरने के बाद कब मायके से तार टूट गए पता ही नही चला, आज बरसो बाद उस सपने ने और उस सपने में हो रही उस बारिश की महक ने उसे फिर से वही बेपरवाह लड़की अनन्या से मिला दिया था जो की अब कही खो गयी थी


नाचहाते हुए भी उसने अलार्म बंद किया और थोड़ी देर में आती हूँ कहकर उसने अपने पति को भेज दिया, आज उसे अपनी माँ और उसके आँचल की महक की कमी बहुत ज्यादा महसूस हो रही थी, उसने अपनी कपबोर्ड खोली और उसमे रखी अपनी की साड़ी को अपने सीने से लगा कर उसकी महक को महसूस कर रही थी, जो अब उससे बहुत दूर चली गयी थी, आज एक बार फिर उसे आभास हो रहा था कि माँ से बढ़ कर कोई भी तो नही इस दुनिया में जो अपनी औलाद की हर तकलीफ को उठाने का हौसला रखती है


आज वो शायद बीमार थी, लेकिन किसे परवाह थी उसके बीमार होने की पति को दफ्तर जाना था, बच्चों को स्कूल जाना था, सास ससुर को पूजा पाठ में लग जाना था, और एक वो समय भी था जब वो बीमार होती तो उसकी माँ उसके नखरे उठाती दवाई न खाने पर उसे प्यार से डांट कर दवाई खिलाती और किसी भी काम को न करने की सख़्ती से मना कर देती पढ़ाई भी बंद करा देती थी और अपने आँचल में समेट लेती


भाई भी अब बदल गया था, जो बात बात पर लड़ता झगड़ता था उसके बीमार होने पर घर सर पर उठा लेता था अब तो उसे  उसका हाल चाल पूछे हुए भी जमाना हो गया, बारिश और मिट्टी की महक को महसूस किए भी जमाना हो गया और उस बारिश में माँ के हाथ के पराठे खाये भी एक अरसा बीत गया, अब तो बस दूसरों को ख़ुश करने में ही जिंदगी निकली जा रही है,

अनन्या की आँखे नम थी वो अभी और अपनी माँ की साड़ी को अपने सीने से लगा कर उससे आती महक को महसूस करना चाहती थी, लेकिन तब ही बाहर से आयी एक और आवाज़ ने उसे उससे जुदा होने पर मजबूर कर दिया और वो अच्छा आती हूँ कहकर, बाथरूम में चली जाती है


समाप्त,,,,,



प्रतियोगिता हेतु 


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8 Comments

Abhilasha Deshpande

17-Feb-2023 11:19 AM

nice

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अदिति झा

17-Feb-2023 09:14 AM

Nice 👍🏼

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Abhinav ji

17-Feb-2023 08:48 AM

Very nice

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